गिरने वाले उस मकान में भी एक सलीक़ा था
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तुम ईंटों कि बात करते हो , मिट्टी भी साथ साथ गिरी
गिरने वाले उस मकान में भी एक सलीक़ा था
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तुम ईंटों कि बात करते हो , मिट्टी भी साथ साथ गिरी
बेज़ान आईने का दखल ग़वाऱा नही मुझे
मैं केवल खुद को तेरी आँखों में देखना चाहती हुँ 💞😘 💞
👉💞 💞👈
बेहपना मोहबतें –
अरे ओ गालिब सांवले रंग पर मत जा गालिब
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मैंने दुध से ज्यादा चाय के दिवाने देखे है।
😍☕️😍
न शोहरत की दरकार थी
न तोहमत से बैर था
उम्मीद इतना ही था की
वो अपना था गैर न था
~बेबाक इलाहाबादी
फूल जैसे मख़मली तलवों में छाले कर दिए,
गोरे सूरज ने हज़ारों जिस्म काले कर दिए।
~राहत इंदौरी
घुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुए
मैं ख़ुद से रूठ गया हूँ उसे मनाते हुए
~अज़हर इक़बाल
अपनी मुट्ठी में छुपा कर किसी जुगनू की तरह
हम तेरे नाम को चुपके से पढ़ा करते हैं
~अलीना इतरत