मैं गणित था उलझता गया
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वो कला थी तो निखरती गई
मैं गणित था उलझता गया
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वो कला थी तो निखरती गई
वो अनिवार्य थी
छोड़ी न गई
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मैं विकल्प था
खाली छोड़ा गया .
मैं इतिहास था विवादित रहा
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वो भूगोल थी सो बदल गयी !!
एक आख़िरी मुलाक़ात को
बुलाया था उसने
मैं नहीं गया,
यूँ न जाकर
मैंने बचाये रखी
एक आख़िरी मुलाक़ात
~ पंकज विश्वजीत
लिपट लिपट कर कह रही हैं, दिसम्बर की ये आखिरी शामें,
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अलविदा कहने से पहले एक बार गले तो लगा लो…!
मैं जब भी टूटता हूँ,
तो तुझे ढूंढता हूँ
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तु हमेशा कहती थी ना,
कि हम एक है..!!
ए नसीब ज़रा एक बात तो बता…
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तू सबको आज़माता है या मुझसे ही दुश्मनी है!
तुझे मुफ़्त में जो मिल गये हम
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तू क़दर ना करें ये तेरा हक़ बनता है…
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जिन्दगी स्टेशन की तरह
हो गई है…
लोग तो बहुत है लेकिन
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अपना कोई नही…
प्रेम मे रहना,
पर
प्रेमी के ह्दय में ना रहना
जीवन का
सब से बड़ा दुःख है !
💛💙