न शोहरत की दरकार थी

न शोहरत की दरकार थी

न शोहरत की दरकार थी
न तोहमत से बैर था
उम्मीद इतना ही था की
वो अपना था गैर न था

~बेबाक इलाहाबादी

Leave a Reply

Your email address will not be published.