रहने दे कुछ बाते…..
यूँ ही अनकही सी..
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कुछ जवाब तेरी-मेरी …
ख़ामोशी में अटके ही अच्छे हैं.
रहने दे कुछ बाते…..
यूँ ही अनकही सी..
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कुछ जवाब तेरी-मेरी …
ख़ामोशी में अटके ही अच्छे हैं.
कैसे भूलेगी वो मेरी बरसोंकी चाहत को…
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दरिया अगर सूख भी जाये तो रेत से नमी नहीं जाती…
झुका हूँ तो कभी सिर्फ अपनों के लिए
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और लोग इसे मेरी मज़बूरी समझ बैठे
कौन कहता है की दिल..
सिर्फ लफ्जों से दुखाया जाता है,
तेरी ख़ामोशी भी कभी कभी..
आँखें नम कर देती है..