शीशे की तरह आर-पार हूँ
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फिर भी बहुतों की समझ से बाहर हूं..!
झुका हूँ तो कभी सिर्फ अपनों के लिए
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और लोग इसे मेरी मज़बूरी समझ बैठे
कौन कहता है की दिल..
सिर्फ लफ्जों से दुखाया जाता है,
तेरी ख़ामोशी भी कभी कभी..
आँखें नम कर देती है..