जब भी खोला है ये माज़ी का दरीचा मैं ने
कोई तस्वीर ख़यालों में नज़र आती है
~फ़रह इक़बाल
जब भी खोला है ये माज़ी का दरीचा मैं ने
कोई तस्वीर ख़यालों में नज़र आती है
~फ़रह इक़बाल
काश भीगता कभी तू
मेरे सुखन की बारिश में।
कतरा – कतरा जज़्बात,
तेरी जड़ों में रिस जाते।।
इश्क़ में क्या तुम और क्या मैं
आप ही रूठिये, आप ही मानिये
और भी बहुत रंग हैं मोहब्बत के
हरेक आज़माइये, हरेक जानिये
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
~अहमद फ़राज़
मैं तुमसे बेहतर लिखता हूँ
पर जज्बात तुम्हारे अच्छे हैं
मैं खुश हरदम रहता हूँ
पर मुस्कान तुम्हारी अच्छी हैं
मैं अपने उसूलों पर चलता हूँ
पर ज़िद तुम्हारी अच्छी हैं
मैं एक बेहतर शख्सियत हूँ ,
पर सीरत तुम्हारी अच्छी हैं
मैं कितना भी कुछ कहता रहूँ
पर हर बात तुम्हारी अच्छी हैं
वजह को एक वजह पे ख़तम करेंगे
तुम सजा ऐसी देना
की हम बिन खता के खता को खत्म करेंगे
शौक था कभी पढ़ने का उन्हें जिन्हे पढ़ कर सभी छोड़ दिया करते थे
आज छोड़ रहे है वो मेहताब उन्हें
जो छोड़ी चीज को खुशी से जोड़ दिया करते थे
इंतजार भी उसका जिसे
आना ही नहीं है….
प्यार भी उस से …
जिसको कभी पाना ही नहीं है..!!😊