रोज़ रोज़ जलते हैं,
फिर भी खाक़ न हुए,
अजीब हैं कुछ ख़्वाब भी,
बुझ कर भी राख़ न हुए…
रोज़ रोज़ जलते हैं,
फिर भी खाक़ न हुए,
अजीब हैं कुछ ख़्वाब भी,
बुझ कर भी राख़ न हुए…
साँसों का टूट जाना तो बहुत छोटी सी बात है दोस्तो,
जब अपने याद करना छोड़ दे, मौत तो उसे कहते है !!
न ज़ख्म भरे, न शराब सहारा हुई.,
न वो वापस लौटीं, न मोहब्बत दोबारा हुई..
तुमने तो फिर भी सीख लिए दुनिया के चाल चलन…
हम तो कुछ भी ना कर सके बस मुहब्बत के सिवा !!
“कभी हमसे भी पूछ लिया करो हाल-ए-दिल,
कभी हम भी तो कह सकें दुआ है आपकी”