लिपट लिपट कर कह रही हैं, दिसम्बर की ये आखिरी शामें,
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अलविदा कहने से पहले एक बार गले तो लगा लो…!
लिपट लिपट कर कह रही हैं, दिसम्बर की ये आखिरी शामें,
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अलविदा कहने से पहले एक बार गले तो लगा लो…!
ये दिसम्बर भी बीतेगा पिछले साल की तरह,
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इसे भी तुम्हारी तरह रुकने की आदत नहीं।
गिरने वाले उस मकान में भी एक सलीक़ा था
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तुम ईंटों कि बात करते हो , मिट्टी भी साथ साथ गिरी
मैं रुई पर एक
कविता लिखूँगा
और उसे तेल में डुबाकर
दिया में सजाऊँगा
फिर संसार के सबसे ऊंचे
पर्वत पर जाकर
मैं उस दीये को जलाऊँगा
कविता में कुछ हो न हो
उजाला जरूर होना चाहिए
बस इतना उजाला
जो अंधेरा हर सके।
~ देवेंद्र
तुम दिल्ली की इठलाती मेट्रो
मैं कलकत्ते का सहमा ट्राम प्रिये
तुम अंग्रेजी की पॉपुलर लेक्चरर
मैं हिंदी का लेखक गुमनाम प्रिये
बदल जाऊं तो मेरा नाम वक्त रखना,
थम जाऊं तो हालात,
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छलक जाऊं तो मुझे जज्बात कहना..
महसूस हो जाऊं तो दोस्त राज़
#बज़्म
मिलने की तरह
वो मुझसे पल भर
नही मिलता
दिल भी मिला तो
उस से मिला
जिस से मुकद्दर नही मिलता
एक बार इश्क़ हो जाने दो हमको भी…
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फिर शायरियां चेप चेप कर कलेजा ना फाड़ दिया तो कहना…😂
😂😂😂😂😂