बुरा कैसे बन गया साहब…
दर्द लिखता हुँ
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किसी को देता तो नही…
तेरे लहजे में लाख मिठास सही मगर,
मुझे जहर लगता है तेरा औरों से बात करना….
वाकई पत्थर दिल ही होते हैं शायर…!!
वर्ना अपनी आह पर वाह सुनना कोई मज़ाक नहीं…!!
रोज़ रोज़ जलते हैं,
फिर भी खाक़ न हुए,
अजीब हैं कुछ ख़्वाब भी,
बुझ कर भी राख़ न हुए…