ख्वाहिशे मेरी “अधुरी” ही सही पर ..
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पर कोशिशे मै “पूरी” करता हुं….
हमारा अंदाज कोई ना लगाए तो ही ठिक होगा,.
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क्यूंकि अंदाज तो बारिशों का लगाया जाता है
तूफ़ान का नहीं.
हर रोज़ खा जाते थे वो कसम मेरे नाम की,
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आज पता चला की जिंदगी धीरे धीरे ख़त्म क्यूँ हो रही है.
झुका हूँ तो कभी सिर्फ अपनों के लिए
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और लोग इसे मेरी मज़बूरी समझ बैठे
नजाकत तो देखिये, की सूखे पत्ते ने डाली से कहा ..
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चुपके से अलग करना वरना लोगो का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा….