आदमी क्‍या चूहे से भी बद्तर हो गया है

आदमी क्‍या चूहे से भी बद्तर हो गया है

“आदमी क्‍या चूहे से भी बद्तर हो गया है? चूहा तो अपनी रोटी के हक के लिए मेरे सिर पर चढ़ जाता है, मेरी नींद हराम कर देता है”

~ हरिशंकर परसाई (“चूहा और मै”)

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