संस्कार इसलिए भी कम हो गए हैं बच्चों में…
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पहले बुजुर्गों से सीखते थे और अब गूगल से .
संस्कार इसलिए भी कम हो गए हैं बच्चों में…
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पहले बुजुर्गों से सीखते थे और अब गूगल से .
“मै एक मज़दूर हूँ।
जिस दिन कुछ लिख न लूँ,
उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।”
#प्रेमचंद
फुटपाथ पर सोने वाले हैरान है आती जाती गाडियो को देख कर
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कमबख्त जिनके पास घर है वो घर क्यों नही जाते।
घुटन क्या चीज़ है, ये पूछिये उस बच्चे से
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जो काम करता हैं
“इक खिलोने की दुकान पर “
प्रेमिकाएँ पत्नियाँ होना चाहती रहीं…
और पत्नियाँ प्रेमिकाएँ….
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कोई पुरुष किसी स्त्री को शायद पूरा मिला ही नहीं…
दिया जरुर जलाऊंगा चाहे मुझे ईश्वर मिले न मिले,
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हो सकता है दीपक की रोशनी से किसी मुसाफिर को ठोकर न लगे….
प्रभू को भी पसंद नहीं सख्ती बयान में…
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इसी लिए हड्डी नहीं दी, जबाऩ में..|।।
तुम्हारा लक्ष्य अगर बड़ा हो और उस पे हंसने वाले न हो तो
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समझना लक्ष्य अभी छोटा है …………
हर रिश्ते मे मिलावट देखीं,
कच्चे रँगों क़ी सजावट देखी।
लेकिन सालों-साल देखा है माँ को,
उसके चेहरे पर ना थकावट देखीं,
ना ममता मे मिलावट देखी।