धागा भी दरख़्त पर बांध कर देखा….
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सुख गया दरख़्त मगर वो मेरा न हुआ..
किसी को चाहना तो
इतनी शिद्दत से चाहना की
उसके जाने के बाद
तुम्हारी कविताएँ
मोहताज न रहें
किसी समीक्षक की
किसी प्रशंसक की….
~ रचित दीक्षित
गलतियों से जुदा तू भी नही, मैं भी नही,
दोनों इंसान हैं, खुदा तू भी नही, मैं भी नहीं
तू मुझे औऱ मैं तुझे इल्जाम देते हैं मगर,
अपने अंदर झाँकता तू भी नही, मैं भी नही
गलतफमियों ने कर दी दोनो मे पैदा दूरियां
वरना बुरा तूभी नही, मैं भी नही
एक बक्त ऐसा भी आता है..
जब सब कुछ अच्छा होने के बाद भी……
मुस्कराने को दिल नहीं करता….
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बस आजकल वही वक्त चल रहा है….
जाने दीजिए साहिब…
मेरी मोहब्बत तुम्हारी समझ ना आएगी,,,
जिसने रुलाया है…
उसको गले से लगाकर रोने को जी चाहता है…!!!🖊️
कुछ लोग अपनें लम्हें सँवारने के लिए
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दूसरों की सदियाँ वीरान कर देते हैं
खुशी के माहौल में भी मेरा लिखा पढ़कर रो पड़ो
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तो समझ लेना कि मैं अब भी जिंदा हूँ तुममे !!
ना चाहते हुए भी छोड़ना पड़ता है …
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कुछ मजबूरियां , मोहब्बत से भी गहरी होती है ,