हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं, पर ‘हिच-किचा’ रही हैं…
कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फुरसत में याद कर के…
हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं, पर ‘हिच-किचा’ रही हैं…
कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फुरसत में याद कर के…
अंदर ही अंदर अंगड़ाईयाँ लेकर मचलती हैं,जो हमेशा …
उन्हीं चाहतों का खुला आसमां हो तुम..!!