स्त्री चाहती है..
पुरुष उसको पढ़े ।
पुरुष चाहता है..
स्त्री उसको सुने ।
दोनों ही एक दूसरे को..
ना सुनते हैं
ना ही पढ़ते हैं हाँ…
यह अलग बात है कि..
आजकल दोनों ही एक – दूसरे को लिखते खूब हैं !!
स्त्री चाहती है..
पुरुष उसको पढ़े ।
पुरुष चाहता है..
स्त्री उसको सुने ।
दोनों ही एक दूसरे को..
ना सुनते हैं
ना ही पढ़ते हैं हाँ…
यह अलग बात है कि..
आजकल दोनों ही एक – दूसरे को लिखते खूब हैं !!
पिताजी गणित हैं,
कठिन, समझ में नहीं आते
लेकिन सत्य भी वही हैं।
और माँ?
माँ, प्रेम है, साहित्य है।
माँ, एक कहानी सुनाती है,
जोकि काल्पनिक है।
जिससे हम सीखते हैं सत्य
और समझने लगते हैं गणित…
~देवेंद्र पाण्डेय(@SankrityaDev)
जली को “आग” कहते है, बुझी को राख कहते है जिस बात को सुनकर चप्पल हाथ में आ जाये उसे
“मन की बात” कहते है
“मै एक मज़दूर हूँ।
जिस दिन कुछ लिख न लूँ,
उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।”
#प्रेमचंद
जिन्हें पसीना सिर्फ़ गर्मी और भय से आता है,
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वे श्रम के पसीने से बहुत डरते हैं!
– हरिशंकर परसाई
भारतीय माता पिता सीधे माना नहीं करते हैं..
वो तो बस इतना कहते हैं…
.
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” हम कौन होते हैं तुझे मना करने वाले..!”
😂😝😂😝😂
यदि कोई तुम्हे नज़र अंदाज़ करे तो
बुरा मत मानना क्योंकि
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इंसान अक्सर
महंगी चीजो को नज़र अंदाज़ करता है😜