लिख दूँ किताब तेरी मासूमियत पे मैं
लेकिन
कहीं हर कोई तुझे पाने का तलबगार न हो जाए।
लिख दूँ किताब तेरी मासूमियत पे मैं
लेकिन
कहीं हर कोई तुझे पाने का तलबगार न हो जाए।
जैसे बरस पड़ती है …..
मेरी आंखे तुझे याद करके….
क्या कभी …..
तेरी बाहे नहीं तरसती …..
मुझे गले लगाने के लिए
कुछ अजीब शख्सियत है हम दोनों की…
न वो #Ghazal में बयाँ होती हैं न हम #Status में।
बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों,
कोई पहलू तो रहे बात बदलने के लिए।
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए.
~ केदारनाथ सिंह
ज़रा सी देर को तुम अपनी आँखें दे दो मुझे
ये देखना है कि मैं तुम को कैसा लगता हूँ
=मुईन शादाब
दुआ करों मैं कोई रास्ता निकाल सकूँ,
तुम्हे भी देख सकूँ, खुद को भी संभाल सकूँ।
– निदा फाजली