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ख्वाहिशे दफ़न करे या चादर बड़ी करें

ये कश्मकश है ज़िंदगी की
कि कैसे बसर करें ……

ख्वाहिशे दफ़न करे
या चादर बड़ी करें ….

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था|
तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था।

इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था।

– गोपालदास नीरज