हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं, पर ‘हिच-किचा’ रही हैं…
कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फुरसत में याद कर के…
हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं, पर ‘हिच-किचा’ रही हैं…
कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फुरसत में याद कर के…
अंदर ही अंदर अंगड़ाईयाँ लेकर मचलती हैं,जो हमेशा …
उन्हीं चाहतों का खुला आसमां हो तुम..!!
जिधर देखो इश्क के बीमार बैठे हैं
हजारों मर गये लाखों तैयार बैठे हैं
बर्बाद होते हैं Tweeter के पीछे
और कहते हैं की
मोदी सरकार कि वजह से बेरोजगार बैठे है
😛😛😂
निराशावादी बनने से बेहतर है प्रयोगवादी बनना
हासिल कुछ ना हुआ तो अनुभव तो मिलेगा हमें
कभी आप खुले आसमान के नीचे अपनी कमाई रख कर देखिये,
रात भर नींद नहीं आएगी…..!
सोचिये किसान पर क्या गुज़रती होगी … . ???
किसी को शिद्दत से चाहो !!
तो पूरी कायनात का “भाव” वो अकेला ही खाने लग जाता है 😂😂😂