मेरी तक़दीर में एक भी गम ना होता,
अगर तक़दीर लिखने का हक़ मेरी माँ को होता..!!
मेरी तक़दीर में एक भी गम ना होता,
अगर तक़दीर लिखने का हक़ मेरी माँ को होता..!!
स्कूल का वो बस्ता मुझे फिर से थमा दे माँ,
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ये ज़िन्दगी का सफर मुझे बड़ा मुश्किल लगता हैं!
कमा के इतनी दौलत भी मैं अपनी माँ को दे ना पाया,
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के जितने सिक्कों से माँ मेरी नज़र उतारा करती थी..!!
तेरी डिब्बे की वो दो रोटिया कही बिकती नहीं, माँ,
महँगे होटलों में आज भी भूख मिटती नहीं माँ …!!
दिन भर के काम के बाद …..
पापा ने पूछा कितना कमाया ..
बेटे ने पूछा क्या लाया ..
बीवी ने पूछा कितना बचाया ..
और माँ ने पूछा बेटा कुछ खाया
जब एक रोटी के चार टुकड़े हों और खाने वाले पाँच,
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तब मुझे भूख नहीं है ऐसा कहने वाली इंसान है – माँ !
माना थक कर आँखे उसकी बंद होती हैं ,
पर माँ सोती भी हैं, तो फिक्रमंद होती हैं।
मेरी ख्वाहिश है की मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपटूँ की बच्चा हो जाऊँ।
मैं ही नहीं,
बड़े बड़े सूरमा भी याद करते हैं…
‘दर्द’ जब हद से ज्याद होता है तो,
सब “माँ” याद करते हैं |।।