सब्र इतना रखो की इश्क़ बेहूदा ना बने
.
.
.
खुदा मेहबूब बन जाए …
पर महबूब खुदा ना बने
सब्र इतना रखो की इश्क़ बेहूदा ना बने
.
.
.
खुदा मेहबूब बन जाए …
पर महबूब खुदा ना बने
किसी को चाहना तो
इतनी शिद्दत से चाहना की
उसके जाने के बाद
तुम्हारी कविताएँ
मोहताज न रहें
किसी समीक्षक की
किसी प्रशंसक की….
~ रचित दीक्षित
बिना जिस्म को छुए
कोई रूह से लिपट जाए…
.
.
.
मेरे ख्याल में तो
वही सच्चा इश्क़ है..
सुन रहे हो प्रिय?
तुम्हें मैं प्यार करती हूँ।
और जब नारी किसी नर से कहे,
प्रिय! तुम्हें मैं प्यार करती हूँ,
तो उचित है, नर इसे सुन ले ठहर कर,
प्रेम करने को भले ही वह न ठहरे।
~ दिनकर (‘उर्वशी’ से)
जब प्रेम का इज़हार करेंगे हम
हमारी कोई भी महान उपलब्धि
काम नहीं आएगी
काम आएगा सिर्फ़
स्त्री के क़दमों में बैठ
काँपते हाथों से फूल देना
भक्त – बाबा मोहब्बत अपने अंजाम पर कब पहुँचती है
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
बाबा ‐ जब कमरे की व्यवस्था हो जाती है
😂🙈😂🙈😂🙈😂🙈😂🙈😂🙈😂
इश्क में रूठना एक अदा है,
पर रूठकर दूरी बनाना…. एक इशारा,
किसी से रूठ कर आप उनसे दूरी बनाते हो,
तो आप उन्हें परोक्ष रूप में इशारा रहे हो,
के “मैं ऐसे ही खुश हूं” ….!!
💛
कभी लफ़्ज़ों में मत ढूँढना…
मेरे इश्क का वजूद…
.
.
मैं उतना नहीं लिख पाता…
जितना महसूस करता हुँ…
कहीं पढ़ा था-
“बो देना प्रेम नहीं है।
उग आना प्रेम है”
और मैं कह आया–
“बो देना या फिर उग आना
प्रेम है या नहीं
ये तो मैं नहीं जानता।
बस इतना जानता हूँ
उस उग आये
पौध को
सींचते रहना ही प्रेम है!”