माह – ए- इश्क़ फ़रवरी आ गई है,
अब कलमों के मिजाज़ भी बदलेंगे
और दिलों के भी……
स्त्री चाहती है..
पुरुष उसको पढ़े ।
पुरुष चाहता है..
स्त्री उसको सुने ।
दोनों ही एक दूसरे को..
ना सुनते हैं
ना ही पढ़ते हैं हाँ…
यह अलग बात है कि..
आजकल दोनों ही एक – दूसरे को लिखते खूब हैं !!
एक आख़िरी मुलाक़ात को
बुलाया था उसने
मैं नहीं गया,
यूँ न जाकर
मैंने बचाये रखी
एक आख़िरी मुलाक़ात
~ पंकज विश्वजीत
रात को मैंने उससे पूछा कि
तुम्हें नींद ज्यादा पसंद है या मैं….
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सुबह 10 बजे उसका रिप्लाई आया
“तुम”
😢😢😢😢😶😶🙄✌️
मेरे हाथ अक्सर एक हाथ तलाशा करते है,
तुझसे गुजरे है, तेरा साथ तलाशा करते है
गालियां, वो सड़के, इश्क़ में थी सनी – सनी ,
ओस की बूंदों में वही रात तलाशा करते है
© नेहा नूपुर
मैं तुम्हारा नाम पुकारूँ
तुम महक-महक जाओ
मैं बनाऊं एक कविता
तुम कलाम की स्याही बन जाओ
–नेहा नूपुर