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शायरी भाग -1

क्या हुआ अगर हम किसी के दिल में
नहीं धङकते ….?

आँखों में तो बहुतो के खटकते हैं ….!!!

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“कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ..
की खुदा नूर भी बरसाता है … आज़माइशों के बाद”..

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ये तेरे बाप का खरीदा हुआ खिलोना नहीँ जिसे तू केसे भी तोड दे ! ये मेरा दिल हे इसे बेचने का इरादा नहीँ ओर खरीदने की तेरी ओकात नहीँ..

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तुम्हारे पास आता हूं तो सांसें भीग जाती हैं,
मुहब्बत इतनी मिलती है के’ आंखें भीग जाती हैं.

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ये सर्द हवाएं मुझसे कहती है कि दिसम्बर आ गया है.
मुझे ऊन बाहों की गर्माहट का इंतज़ार आज भी है…

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मेरे लफ्जों की ज़ुबां से उफ़ नहीं होता !
लिख कर बर्बादिया मैं खुद नहीं रोता !!

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नाबुरा होगा, ना बढ़िया होगा,
होगा वैसा, जैसा नजरिया होगा ।

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लगता है मेरा खुदा मेहरबान है मुझ पर, मेरी दुनिया में तेरी मौजूदगी यूँ ही तो नहीं है|

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फिर पलकों पर ठहर गइ नमी,
दिल ने कहा बस “ऐक तेरी कमी”..!!

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मुझे तू इस क़दर अपने क़रीब लगता है ….
तुझे अलग से जो सोचूँ, अजीब लगता है..!!!

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नहीं मिला कोई तुम जैसा आज तक,

पर ये सितम अलग है की मिले तुम भी नही…

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मैं राज़ तुझसे कहूँ, हमराज़ बन जा ज़रा.
करनी है कुछ गूफतगू, अलफ़ाज बन जा ज़रा…

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अब अपने ज़ख़्म दिखाऊँ किसे और किसे नहीं …!
बेगाने समझते नहीं और अपनो को दिखते नहीं.

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गुलाब, ख्वाब, ज़हर, जाम क्या-क्या है ?
मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है ?

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तुम भी कर के देख लो मोहब्बत किसी से;
जान जाओगे कि हम मुस्कुराना क्यों भूल गए।

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एक मैं हूँ , किया ना कभी सवाल कोई
एक तुम हो , जिसका कोई जवाब नहीं.

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उसने मेरा हाथ थामा था उस पार जाने के लिए…
और मेरी एक ही तमन्ना थी कभी किनारा ना आए….

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हमे आंखे मिलाने के शौक न था,
तुम्हे देखा तो आदत खराब हो गई…

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उनको आ सकी न निभानी मुहब्बत,

अब पड़ रही है हमको भुलानी मुहब्बत,

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“ग़मों को आबरू अपनी ख़ुशी को गम समझते हैं,
जिन्हें कोई नहीं समझा उन्हें बस हम समझते हैं.

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दोनों जानते हे के, हम नहीं एक-दूसरे के नसीब में,
फिर भी मोहब्बत दिन-ब-दिन बे-पनाह होती जा रही हे !!

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