कैसे भूलेगी वो मेरी बरसोंकी चाहत को…
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दरिया अगर सूख भी जाये तो रेत से नमी नहीं जाती…
कैसे भूलेगी वो मेरी बरसोंकी चाहत को…
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दरिया अगर सूख भी जाये तो रेत से नमी नहीं जाती…
हमारा अंदाज कोई ना लगाए तो ही ठिक होगा,.
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क्यूंकि अंदाज तो बारिशों का लगाया जाता है
तूफ़ान का नहीं.
झुका हूँ तो कभी सिर्फ अपनों के लिए
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और लोग इसे मेरी मज़बूरी समझ बैठे
नजाकत तो देखिये, की सूखे पत्ते ने डाली से कहा ..
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चुपके से अलग करना वरना लोगो का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा….
कौन कहता है की दिल..
सिर्फ लफ्जों से दुखाया जाता है,
तेरी ख़ामोशी भी कभी कभी..
आँखें नम कर देती है..