माह – ए- इश्क़ फ़रवरी आ गई है,
अब कलमों के मिजाज़ भी बदलेंगे
और दिलों के भी……
स्त्री चाहती है..
पुरुष उसको पढ़े ।
पुरुष चाहता है..
स्त्री उसको सुने ।
दोनों ही एक दूसरे को..
ना सुनते हैं
ना ही पढ़ते हैं हाँ…
यह अलग बात है कि..
आजकल दोनों ही एक – दूसरे को लिखते खूब हैं !!
बस इसी उम्मीद पे होता गया बर्बाद मैं
गर कभी बिखरा तो आ कर तू सँभालेगा मुझे
~ अक्स समस्तीपुरी
पिताजी गणित हैं,
कठिन, समझ में नहीं आते
लेकिन सत्य भी वही हैं।
और माँ?
माँ, प्रेम है, साहित्य है।
माँ, एक कहानी सुनाती है,
जोकि काल्पनिक है।
जिससे हम सीखते हैं सत्य
और समझने लगते हैं गणित…
~देवेंद्र पाण्डेय(@SankrityaDev)