जुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आजमाये गये,
जुल्म भी सहा हमने, और जालिम भी कहलाये गये!!
जुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आजमाये गये,
जुल्म भी सहा हमने, और जालिम भी कहलाये गये!!
जब कभी दर्द की तस्वीर बनाने निकले
ज़ख़्म की तह में कई ज़ख़्म पुराने निकले
~अहया भोजपुरी
जब भी खोला है ये माज़ी का दरीचा मैं ने
कोई तस्वीर ख़यालों में नज़र आती है
~फ़रह इक़बाल
काश अठखेलियां लेता कभी
तेरे प्यार से उफनते सागर में
रोम रोम हर्षित हो जाता तब
मिलता सुकून भरता तुझे पहलू में
काश भीगता कभी तू
मेरे सुखन की बारिश में।
कतरा – कतरा जज़्बात,
तेरी जड़ों में रिस जाते।।
कुछ गम, कुछ ठोकरें, कुछ चीखें उधार देती है।
कभी-कभी जिंदगी, मौत आने के पहले ही मार देती है।।