बाज़ार बड़ा मंदा है साहेब….. ख़ुशी की किल्लत है और ग़म कोई ख़रीद नहीं रहा
बहुत पाक रिश्ते होते है नफरतों के, कपड़े अक्सर मोहब्बत में ही उतरते हैं…
शहर बसाकर, अब सुकून के लिए गाँव ढूँढते हैं..... बड़े अजीब हैं लोग हाथ में कुल्हाड़ी लिए, छाँव ढूँढते हैं.....
रख लो आईने हज़ार तसल्ली के लिए……!! पर सच के लिए तो,आँखें ही मिलानी प़डेगी….!!!
” बुरा ” हमेशा वही बनता है, जो ” अच्छा ” बनके टूट चूका होता है !
“मतलब” बहुत वजनदार होता है …! . . . निकल जाने के बाद हर रिश्ते को हल्का कर देता है…
दुआएँ मिल जायें... सब की बस यही काफी है... दवाएँ तो ..... कीमत अदा करने पर... मिल ही जाती हैं....
कीमत दोनों की चुकानी पड़ती है, बोलने की भी और चुप रहने की भी.!!
आज का ज्ञान कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष में जन्मे ब्यक्ति को तो आप समझा सकते हैं मगर विपक्ष में…
जब भी किसी गरीब को हँसते हुए देखे तो समझ लेना चाहिये कि खुशियों का ताल्लुक दौलत से नहीं है