औरत मोहताज नहीं किसी गुलाब की, . .वो खुद बाग़बान है इस कायनात की
मुस्कान को तभी रोको जब वो किसी को चोट पहुंचा रही होवरना …..खिल खिलाकर हसने दो
स्त्री चाहती है.. पुरुष उसको पढ़े । पुरुष चाहता है.. स्त्री उसको सुने । दोनों ही एक दूसरे को.. ना…
"मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।" #प्रेमचंद
चापलूस और आलोचक मे केवल इतना अन्तर है कि चापलूस अच्छा बनकर बुरा करता है . . . और आलोचक…
कुछ लोग जो पानी छानकर पीते हैं, . . . खून बिना छना पी जाते हैं ~ हरिशंकर परसाई