ख़ुदा के फ़ज़्ल से मुझ को सभी कुछ मिल गया लेकिन मुझे इस बज़्म में उन की कमी तकलीफ़ देती…
तलब में शुमार इस कदर दीदार उनका, सौ बार भी मिल जाये अधूरा लगता है।
कुछ शब्द हो तो देना राह गुजरते राहगीर शब्द ए आईने की खिदमत "उसे" करनी है
ये कश्मकश है ज़िंदगी की कि कैसे बसर करें ...... ख्वाहिशे दफ़न करे या चादर बड़ी करें ....
सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने वो अंदेशे थे रंग आँखों के गहरे कर लिए हम…
चलो अब जाने भी दो..क्या करोगे दासता सुनकर.., ख़ामोशी तुम समझोगे नहीं,और बयां हमसे होगी नहीं…
सौदा कुछ ऐसा किया है तेरे ख़्वाबों ने मेरी नींदों से.. या तो दोनों आते हैं .. या कोई नहीं…
जो चीज़ मेरी है उसे कोई और ना देखे … इंसान भी मोहबत में बच्चो की तरह सोचता है..
साँसों का टूट जाना तो बहुत छोटी सी बात है दोस्तो, जब अपने याद करना छोड़ दे, मौत तो उसे…
रास्ते कहाँ ख़त्म होते हैं ज़िन्दगी के सफ़र में, मंज़िल तो वहीँ है जहां ख्वाहिशे थम जाए..।।