माह - ए- इश्क़ फ़रवरी आ गई है, अब कलमों के मिजाज़ भी बदलेंगे और दिलों के भी……
मुस्कान को तभी रोको जब वो किसी को चोट पहुंचा रही होवरना …..खिल खिलाकर हसने दो
स्त्री चाहती है.. पुरुष उसको पढ़े । पुरुष चाहता है.. स्त्री उसको सुने । दोनों ही एक दूसरे को.. ना सुनते हैं ना ही पढ़ते हैं हाँ... यह अलग बात है कि.. आजकल दोनों ही एक - दूसरे को लिखते खूब हैं !!
पिताजी गणित हैं,कठिन, समझ में नहीं आतेलेकिन सत्य भी वही हैं। और माँ?माँ, प्रेम है, साहित्य है। माँ, एक कहानी सुनाती है,जोकि काल्पनिक है।जिससे हम सीखते हैं सत्यऔर समझने लगते हैं गणित… ~देवेंद्र पाण्डेय(@SankrityaDev)