सलीका नक़ाब का भी तुमने अजब कर रखा है। जो आँखे हैं क़ातिल, उन्हीं को खुला छोड़ रखा है।।
एक पत्थर की भी तक़दीर सँवर सकती है शर्त ये है कि सलीक़े से तराशा जाए ..