बाज़ार बड़ा मंदा है साहेब….. ख़ुशी की किल्लत है और ग़म कोई ख़रीद नहीं रहा
मेरी ख़ूबीयो पर तो….. यहाँ सब खामोश रहते हैं .. चर्चा मेरे बुराई पे हो तो… गूँगे भी बोल पड़ते…
कुछ बातों के मतलब है और कुछ मतलब की बातें, जब से फर्क जाना जिंदगी आसान बहुत हो गयी
बहुत पाक रिश्ते होते है नफरतों के, कपड़े अक्सर मोहब्बत में ही उतरते हैं…
शहर बसाकर, अब सुकून के लिए गाँव ढूँढते हैं..... बड़े अजीब हैं लोग हाथ में कुल्हाड़ी लिए, छाँव ढूँढते हैं.....
रख लो आईने हज़ार तसल्ली के लिए……!! पर सच के लिए तो,आँखें ही मिलानी प़डेगी….!!!
आशियाने बनें भी तो कहाँ जनाब… जमीनें महँगी हो चली हैं और दिल में लोग जगह नहीं देते..
वाकई पत्थर दिल ही होते हैं शायर…!! वर्ना अपनी आह पर वाह सुनना कोई मज़ाक नहीं…!!