अक्टूबर बिछड़ने का महीना है, शाख़ से पत्ते अलग हुए जा रहे हैं, हवाओं के दिल भी भारी हो रखे…
मैं रुई पर एक कविता लिखूँगा और उसे तेल में डुबाकर दिया में सजाऊँगा फिर संसार के सबसे ऊंचे पर्वत…
कुछ लोग अपनें लम्हें सँवारने के लिए . . . . दूसरों की सदियाँ वीरान कर देते हैं
मुझे पसंद हैं धूसर कत्थई होंठ बिन काजल बड़ी आंखें पसीने से धुला चमकता चेहरा ख़ुश्क लहराते बाल सादे कपड़े…
ना चाहते हुए भी छोड़ना पड़ता है ... . . . . कुछ मजबूरियां , मोहब्बत से भी गहरी होती…
सुनो दूर रहकर भी तुम्हारी हर खबर रखते हैं ....😎 . . . हम तुम्हें अपने करीब कुछ इस कदर…
ना खूबसूरत… ना अमीर… ना शातिर बनाया था. . . मेरे खुदा ने तो मुझे तेरे खातिर बनाया था..😐