लिपट लिपट कर कह रही हैं, दिसम्बर की ये आखिरी शामें, . . . अलविदा कहने से पहले एक बार…
ये दिसम्बर भी बीतेगा पिछले साल की तरह, . . . इसे भी तुम्हारी तरह रुकने की आदत नहीं।
सुनो... तुम्हारी याद भी इस दिसम्बर में, गुनगुनी धुप सा मजा देती है...
तुम्हारे बाद ग़ुज़रे हैं भला कैसे हमारे दिन, नवम्बर से बचे हैं तो दिसम्बर ने मार डाला...
ये सर्द हवाएँ,बिखरे पत्ते और तन्हाई, ऐ दिसम्बर तू सब कुछ ले आया है सिवाय उसके...
ये कैसा ख्याल है तेरा, जो मेरा हाल बदल देता है, तू दिसम्बर की तरह है, जो पूरा साल बदल…