घमण्ड बता देता है कितना पैसा है । #मर्यादा बता देती है परिवार कैसा है ।। बोली बता देती है…
उसकी आँखें गुलज़ार साहब की नज़्म हो जैसे... उसकी बातें जैसे क़ैफ़ी आज़मी की 'तेरी ख़ुशबू में बसे ख़त'...
एक मकाम तक आकर उनका लौट जाना मुड़ मुड़कर फिर आना आकर सताना न जाने क्यों मेरी समझ से बाहर…
काश तुम पूछो की मुझसे क्या चाहिये, मैं पकडू बस तेरा हाथ और कहूँ सिर्फ तेरा साथ चाहिये…
नहीं मिला मुझे कोई तुम जैसा आज तलक, पर ये सितम अलग है कि मिले तुम भी नहीं..!
तुमने तो फिर भी सीख लिए दुनिया के चाल चलन… हम तो कुछ भी ना कर सके बस मुहब्बत के…