लिपट लिपट कर कह रही हैं, दिसम्बर की ये आखिरी शामें, . . . अलविदा कहने से पहले एक बार…
ये दिसम्बर भी बीतेगा पिछले साल की तरह, . . . इसे भी तुम्हारी तरह रुकने की आदत नहीं।
धागा भी दरख़्त पर बांध कर देखा.... . . . सुख गया दरख़्त मगर वो मेरा न हुआ..
गिरने वाले उस मकान में भी एक सलीक़ा था . . . तुम ईंटों कि बात करते हो , मिट्टी…
मैं रुई पर एक कविता लिखूँगा और उसे तेल में डुबाकर दिया में सजाऊँगा फिर संसार के सबसे ऊंचे पर्वत…
तुम दिल्ली की इठलाती मेट्रो मैं कलकत्ते का सहमा ट्राम प्रिये तुम अंग्रेजी की पॉपुलर लेक्चरर मैं हिंदी का लेखक…
बदल जाऊं तो मेरा नाम वक्त रखना, थम जाऊं तो हालात, . . छलक जाऊं तो मुझे जज्बात कहना.. महसूस…
मिलने की तरह वो मुझसे पल भर नही मिलता दिल भी मिला तो उस से मिला जिस से मुकद्दर नही…
एक बार इश्क़ हो जाने दो हमको भी... . . . फिर शायरियां चेप चेप कर कलेजा ना फाड़ दिया…