इश्क़ में क्या तुम और क्या मैं आप ही रूठिये, आप ही मानिये और भी बहुत रंग हैं मोहब्बत के…
मुझ को बीमार करेगी, तेरी आदत इक दिन और फिर तुझ से भी अच्छा नहीं हो पाऊँगा -Rahul Jha
ख़ुदा के फ़ज़्ल से मुझ को सभी कुछ मिल गया लेकिन मुझे इस बज़्म में उन की कमी तकलीफ़ देती…
वजह को एक वजह पे ख़तम करेंगे तुम सजा ऐसी देना की हम बिन खता के खता को खत्म करेंगे
शौक था कभी पढ़ने का उन्हें जिन्हे पढ़ कर सभी छोड़ दिया करते थे आज छोड़ रहे है वो मेहताब…
कुछ शब्द हो तो देना राह गुजरते राहगीर शब्द ए आईने की खिदमत "उसे" करनी है
ये कश्मकश है ज़िंदगी की कि कैसे बसर करें ...... ख्वाहिशे दफ़न करे या चादर बड़ी करें ....
दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था| तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था। इतने मसरूफ़…
इंतजार भी उसका जिसे आना ही नहीं है.... प्यार भी उस से ... जिसको कभी पाना ही नहीं है..!!😊