धागा भी दरख़्त पर बांध कर देखा.... . . . सुख गया दरख़्त मगर वो मेरा न हुआ..
किसी को चाहना तो इतनी शिद्दत से चाहना की उसके जाने के बाद तुम्हारी कविताएँ मोहताज न रहें किसी समीक्षक…
गलतियों से जुदा तू भी नही, मैं भी नही, दोनों इंसान हैं, खुदा तू भी नही, मैं भी नहीं तू…
एक बक्त ऐसा भी आता है.. जब सब कुछ अच्छा होने के बाद भी...... मुस्कराने को दिल नहीं करता.... .…
काश मर जाये वो मजबूरियाँ, . . . . . . जिनकी वजह से तुम मुझसे दूर हो !! 😐☹️☹️☹️
जाने दीजिए साहिब... मेरी मोहब्बत तुम्हारी समझ ना आएगी,,, जिसने रुलाया है... उसको गले से लगाकर रोने को जी चाहता…
कुछ लोग अपनें लम्हें सँवारने के लिए . . . . दूसरों की सदियाँ वीरान कर देते हैं
आंखों के नीचे काले घेरे बताते है . . . . होंठो पर जो मुस्कान है झूठी है 💔
खुशी के माहौल में भी मेरा लिखा पढ़कर रो पड़ो . . . . तो समझ लेना कि मैं अब…
ना चाहते हुए भी छोड़ना पड़ता है ... . . . . कुछ मजबूरियां , मोहब्बत से भी गहरी होती…