जो चीज़ मेरी है उसे कोई और ना देखे … इंसान भी मोहबत में बच्चो की तरह सोचता है..
“कभी हमसे भी पूछ लिया करो हाल-ए-दिल, कभी हम भी तो कह सकें दुआ है आपकी”
मुक्तलिफ है इश्क़ का गणित यारों यहाँ तुम और मैं दो नहीं, एक होते हैं
चाशनी में डूबी दुनिया की मोहब्बतें एक तरफ़ मेरी तुम्हारी नीम सी कड़वी लड़ाइयाँ एक तरफ़
सलीका नक़ाब का भी तुमने अजब कर रखा है। जो आँखे हैं क़ातिल, उन्हीं को खुला छोड़ रखा है।।
हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं, पर 'हिच-किचा' रही हैं... कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फुरसत में याद…
अंदर ही अंदर अंगड़ाईयाँ लेकर मचलती हैं,जो हमेशा ... उन्हीं चाहतों का खुला आसमां हो तुम..!!