चाशनी में डूबी दुनिया की मोहब्बतें एक तरफ़ मेरी तुम्हारी नीम सी कड़वी लड़ाइयाँ एक तरफ़
सलीका नक़ाब का भी तुमने अजब कर रखा है। जो आँखे हैं क़ातिल, उन्हीं को खुला छोड़ रखा है।।
हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं, पर 'हिच-किचा' रही हैं... कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फुरसत में याद…
अंदर ही अंदर अंगड़ाईयाँ लेकर मचलती हैं,जो हमेशा ... उन्हीं चाहतों का खुला आसमां हो तुम..!!
जिस दिन वो मेरी सलामती की दुआ मांगती है उस दिन जेब में पड़ा गोल्ड फ्लैग भी टूट जाता है…