सींचते रहना ही प्रेम है

सींचते रहना ही प्रेम है

कहीं पढ़ा था-

“बो देना प्रेम नहीं है।
उग आना प्रेम है”

और मैं कह आया–
“बो देना या फिर उग आना
प्रेम है या नहीं
ये तो मैं नहीं जानता।

बस इतना जानता हूँ
उस उग आये
पौध को
सींचते रहना ही प्रेम है!”

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