जीभ जलने पर जब चाय नही छोड़ी जाती
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तो दिल जलने पर इश्क़ क्या खाक छोड़ेंगे….
मैं तुम्हारा नाम पुकारूँ
तुम महक-महक जाओ
मैं बनाऊं एक कविता
तुम कलाम की स्याही बन जाओ
–नेहा नूपुर
ये दिसम्बर भी बीतेगा पिछले साल की तरह,
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इसे भी तुम्हारी तरह रुकने की आदत नहीं।
किसी को चाहना तो
इतनी शिद्दत से चाहना की
उसके जाने के बाद
तुम्हारी कविताएँ
मोहताज न रहें
किसी समीक्षक की
किसी प्रशंसक की….
~ रचित दीक्षित
गिरने वाले उस मकान में भी एक सलीक़ा था
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तुम ईंटों कि बात करते हो , मिट्टी भी साथ साथ गिरी
मैं रुई पर एक
कविता लिखूँगा
और उसे तेल में डुबाकर
दिया में सजाऊँगा
फिर संसार के सबसे ऊंचे
पर्वत पर जाकर
मैं उस दीये को जलाऊँगा
कविता में कुछ हो न हो
उजाला जरूर होना चाहिए
बस इतना उजाला
जो अंधेरा हर सके।
~ देवेंद्र
तुम दिल्ली की इठलाती मेट्रो
मैं कलकत्ते का सहमा ट्राम प्रिये
तुम अंग्रेजी की पॉपुलर लेक्चरर
मैं हिंदी का लेखक गुमनाम प्रिये
बेज़ान आईने का दखल ग़वाऱा नही मुझे
मैं केवल खुद को तेरी आँखों में देखना चाहती हुँ 💞😘 💞
👉💞 💞👈
बेहपना मोहबतें –
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन ,
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दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो ।।
~राहत इंदौरी